उत्तराखंड की 194 डीजल बसों पर दिल्ली में लगेगा ब्रेक, 1 नवंबर से पुराने वाहनों की नो एंट्री
तीन साल की अनदेखी पड़ी भारी, अब दिल्ली में सिर्फ बीएस-6, सीएनजी और इलेक्ट्रिक बसें ही चलेंगी
देहरादून : दिल्ली सरकार के सख्त फैसले के बाद उत्तराखंड परिवहन निगम की 194 पुरानी डीजल बसों के दिल्ली में प्रवेश पर 1 नवंबर से पूरी तरह ही रोक लगने जा रही है। बीते 3 वर्षों से निगम इस मुद्दे पर आंखें मूंदे बैठा था, जबकि दिल्ली सरकार बार-बार चेतावनी भी देती रही कि केवल बीएस-6, सीएनजी या इलेक्ट्रिक वाहनों को ही राजधानी में चलने की अनुमति भी मिलेगी।
अब जब दिल्ली की मुख्यमंत्री रेखा गुप्ता ने स्पष्ट कर दिया है कि 1 नवंबर 2025 से पुराने वाहनों को बैन कर दिया जाएगा, तो उत्तराखंड परिवहन निगम में हड़कंप ही मच गया है। वर्तमान में उत्तराखंड से दिल्ली के लिए रोजाना 504 बसें संचालित भी होती हैं, जिनमें से 194 डीजल बसें बीएस-6 मानकों से पहले की हैं, जिन्हें प्रतिबंधित भी किया जाएगा।
बार-बार चेतावनी, फिर भी लापरवाही
दिल्ली के परिवहन विभाग ने 2022 से ही सभी राज्यों को पत्र भेजकर स्पष्ट भी किया था कि पुरानी डीजल बसों को दिल्ली में नहीं चलने दिया जाएगा। पिछले वर्ष अगस्त में भी चेतावनी पत्र भी जारी किया गया, लेकिन उत्तराखंड परिवहन निगम ने इसे हल्के में ही लिया।
जबकि उत्तर प्रदेश, हिमाचल, हरियाणा, पंजाब व राजस्थान जैसे राज्यों ने समय रहते नई बीएस-6 या इलेक्ट्रिक बसें खरीद भी लीं, उत्तराखंड इस मोर्चे पर पिछड़ गया। इसका नतीजा नवंबर 2024 में सामने आया, जब दिल्ली सरकार ने उत्तराखंड की कई पुरानी बसों के प्रवेश पर प्रतिबंध भी लगा दिया था, फिर भी कोई स्थायी समाधान नहीं निकाला गया।
क्या होगा असर?
- 194 बसों के बंद होने से दिल्ली रूट पर यात्रियों को भारी परेशानी होगी।
- निगम को राजस्व का नुकसान होगा, क्योंकि दिल्ली सबसे व्यस्त मार्गों में से एक है।
- पर्यावरणीय मानकों का उल्लंघन करने पर विधिक कार्रवाई की आशंका भी है।
अब क्या तैयारी?
सूत्रों के मुताबिक, अब निगम आपात बैठकें कर रहा है और बीएस-6 मानकों की बसें खरीदने या किराए पर लेने के विकल्पों पर भी विचार कर रहा है। हालांकि, समय की कमी और वित्तीय संकट के चलते यह आसान तो नहीं होगा।
उत्तराखंड परिवहन निगम की 3 साल की लापरवाही अब भारी पड़ने जा रही है। समय रहते चेतावनियों पर अमल न करने के कारण अब न सिर्फ यात्री परेशान ही होंगे, बल्कि निगम को आर्थिक झटका भी लग सकता है। देखना होगा कि सरकार व निगम इस संकट से उबरने के लिए अब क्या ठोस कदम उठाते हैं।



