उत्तराखंड

उत्तराखंड हाईकोर्ट किशोर विवाह पर सख्त, सरकार को दिए जनजागरूकता अभियान चलाने के निर्देश

नैनीताल। उत्तराखंड हाईकोर्ट ने किशोर अवस्था में हो रहे विवाहों पर गहरी चिंता जताते हुए राज्य सरकार को 2 सप्ताह के भीतर व्यापक जनजागरूकता अभियान की योजना प्रस्तुत करने के निर्देश भी दिए हैं। कोर्ट ने स्पष्ट कहा कि किशोरों द्वारा विवाह कर अदालत से सुरक्षा मांगने की प्रवृत्ति खतरनाक रूप भी ले रही है, जिसे गंभीरता से लेने की आवश्यकता भी है।

बाल कल्याण सचिव को कोर्ट में किया तलब

कोर्ट ने पूर्व में जारी आदेश में सचिव, बाल कल्याण परिषद चंद्रेश यादव को व्यक्तिगत रूप से कोर्ट में पेश होने को भी कहा था। बीते बुधवार को सुनवाई के दौरान वे न्यायालय में उपस्थित भी हुए। मुख्य न्यायाधीश जी. नरेंदर और न्यायमूर्ति आलोक मेहरा की खंडपीठ ने सचिव को निर्देश दिए कि वे नाबालिगों में विवाह प्रवृत्ति रोकने व पॉक्सो अधिनियम की गंभीरता समझाने के लिए एक ठोस योजना तैयार कर 2 सप्ताह के भीतर न्यायालय में प्रस्तुत भी करें।

नाटकों-लघु फिल्मों से करें लोगों को जागरूक

कोर्ट ने आदेश में कहा कि

जनजागरूकता अभियान को शिक्षा विभाग, ग्रामीण विकास विभाग, आंगनवाड़ी कार्यकर्ता, स्थानीय प्रशासन व पैरालीगल स्वयंसेवकों के माध्यम से संवेदनशील क्षेत्रों में प्रभावी ढंग से चलाया भी जाए। इसके लिए नाटकों, लघु फिल्मों व संवाद कार्यक्रमों का उपयोग भी किया जाए ताकि माता-पिता व युवा दोनों इस विषय पर गंभीरता से सोच भी सकें।

क्या कहा कोर्ट ने?

कोर्ट के अनुसार, ऐसे मामलों की संख्या बढ़ भी रही है जहां 18-19 वर्ष के युवक-युवतियां विवाह कर कोर्ट से सुरक्षा की मांग भी कर रहे हैं। हालांकि संविधान अपने जीवनसाथी चुनने का अधिकार भी देता है, लेकिन कम उम्र में विवाह से उत्पन्न समस्याएं न केवल बच्चों के जीवन पर प्रभाव डालती हैं बल्कि उन्हें गंभीर कानूनी संकटों में भी डाल सकती हैं।

पॉक्सो के प्रावधानों को बताया अहम

कोर्ट ने चिंता जताई कि कुछ मामलों में लड़कियों के परिजन विवाह के बाद नाबालिग होने का दावा भी करते हैं, जिससे लड़कों पर पॉक्सो (POCSO) अधिनियम के तहत गंभीर मुकदमे भी दर्ज हो जाते हैं। इसके परिणामस्वरूप कई युवक जेल में पहुंच जाते हैं, विवाहिता व बच्चा बेसहारा रह जाते हैं और पूरा परिवार मानसिक और सामाजिक त्रासदी का शिकार भी हो जाता है।

अगली सुनवाई दो सप्ताह बाद

कोर्ट ने निर्देश दिया है कि सचिव शिक्षा चंद्रेश कुमार द्वारा तैयार की गई कार्य योजना अगली सुनवाई पर प्रस्तुत भी की जाए, जिसके बाद हाईकोर्ट इस पर आगे विचार भी करेगा। इस मुद्दे पर सख्ती के साथ कार्य करने के लिए राज्य सरकार को सचेत भी किया गया है।

यह मामला ना सिर्फ बच्चों के भविष्य से जुड़ा है, बल्कि समाज में व्याप्त एक गंभीर सामाजिक चुनौती की ओर इशारा भी करता है।

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