बदरीनाथ धाम में अनूठी परंपरा निभी, रावल ने स्त्री वेश धारण कर माता लक्ष्मी को गर्भगृह में विराजमान किया I
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बदरीनाथ धाम के कपाट शीतकाल के लिए बंद होने के दौरान हर साल की तरह इस बार भी एक अद्वितीय परंपरा का निर्वहन भी किया गया। मंदिर के रावल (मुख्य पुजारी) कपाट बंद होने से ठीक पहले माता लक्ष्मी को भगवान बदरीनाथ के सानिध्य में विराजमान कराने के लिए स्त्री वेश भी धारण करते हैं। माता लक्ष्मी की स्थापना के साथ ही मंदिर 6 माह के लिए शीतकालीन विराम में चला जाता है।
पंच पूजाओं की 5 दिवसीय प्रक्रिया के अंतिम दिन यह विशेष अनुष्ठान संपन्न होता है। माता लक्ष्मी की प्रतिमा को गर्भगृह में स्थापित करने से पहले रावल, परंपरा के अनुसार, उनकी सखी बनकर स्त्री वेश में पूजा-अर्चना भी करते हैं। यह क्षण रावल के लिए भावनात्मक होता है, क्योंकि अगले 6 महीने तक वे भगवान बदरीनाथ की नियमित पूजा-अर्चना से दूर भी रहते हैं।
परंपरा के अनुसार माता लक्ष्मी की स्थापना के बाद रावल उल्टे पांव मंदिर से बाहर भी निकलते हैं और चेहरा दिखाए बिना कर्मचारियों की उपस्थिति में सीधे अपने आवास में पहुंच जाते हैं। बदरीनाथ धाम के पूर्व धर्माधिकारी भुवन चंद्र उनियाल के अनुसार, यह रावल की गहन आस्था व समर्पण से जुड़ा अत्यंत पवित्र अनुष्ठान है।
फूलों से होता है विशेष शृंगार
कपाट बंद होने के दिन भगवान बदरीनाथ का शृंगार परंपरागत आभूषणों की जगह फूलों से किया भी जाता है। वर्ष में यही एकमात्र अवसर होता है जब भगवान पुष्प रूप में भक्तों को दर्शन भी देते हैं।




