उत्तराखंड के पहाड़ों पर दस्तक दे रही दुर्लभ बीमारी – सिस्टिक इचिनोकोकोसिस
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देहरादून। उत्तराखंड के पर्वतीय इलाकों में सिस्टिक इचिनोकोकोसिस नामक दुर्लभ बीमारी धीरे-धीरे अपने पैर पसार रही है। इस संक्रमण की चपेट में आने वाले मरीजों के लीवर व फेफड़ों में जहरीली गांठें भी बन रही हैं। प्रदेश में अब तक 25 मरीजों में इस बीमारी की पुष्टि भी हो चुकी है।
हाल ही में लाइफ जर्नल ने कश्मीर के संदिग्ध मरीजों पर किए गए अध्ययन की रिपोर्ट भी जारी की। 2019 से 2024 के बीच हुए इस शोध में 110 संदिग्धों में से 12 मरीज इस बीमारी से ग्रसित भी पाए गए। इनमें 4 पुरुष व 8 महिलाएं भी शामिल थीं, जिनकी औसत आयु 46 से 58 वर्ष तक दर्ज की गई।
अब उत्तराखंड में भी इस बीमारी पर वैज्ञानिक अध्ययन भी शुरू हो गया है। राजकीय दून मेडिकल कॉलेज अस्पताल में वरिष्ठ जनरल सर्जन डॉ. अभय कुमार इस पर शोध भी कर रहे हैं। उनका कहना है कि शुरुआती चरण में इसके लक्षण सामान्य बीमारियों जैसे ही होते हैं, जिससे पहचान करना मुश्किल भी हो जाता है। गांठ 10 सेंटीमीटर से बड़ी होने के बाद ही मरीजों में पेट दर्द, भूख न लगना व उल्टी जैसे लक्षण भी उभरते हैं।
शोध में सामने आया है कि जिन इलाकों में लोग भेड़-बकरी व कुत्तों को साथ पालते हैं, वहां इचिनोकोकस ग्रैनुलोसस नामक परजीवी भी पनपता है। यह परजीवी फलों व सब्जियों के जरिए शरीर में पहुंचकर लीवर व फेफड़ों पर हमला करता है और जानलेवा गांठ भी तैयार करता है।
उत्तराखंड के उत्तरकाशी, चमोली व टिहरी जिलों से इस बीमारी के सबसे ज्यादा मामले भी सामने आए हैं। डॉ. अभय कुमार के मुताबिक संदिग्ध मरीजों पर पूर्वप्रभावी विधि से अध्ययन भी जारी है और इसके परिणाम जल्द सार्वजनिक भी किए जाएंगे।




