
पितृ पक्ष के चलते अलकनंदा नदी के किनारे स्थित ब्रह्मकपाल तीर्थ में श्रद्धालुओं की भारी भीड़ उमड़ रही है। भारत के विभिन्न राज्यों के साथ-साथ नेपाल, रूस और यूक्रेन जैसे देशों से भी श्रद्धालु यहां पहुंचकर पिंडदान और तर्पण कर रहे हैं।
श्रद्धालु अपने पितरों को तर्पण देने के बाद बदरीनाथ मंदिर के दर्शन कर रहे हैं। श्राद्ध पक्ष में ब्रह्मकपाल तीर्थ पर आस्था और विश्वास का अद्भुत संगम देखने को मिल रहा है।
ब्रह्मकपाल: पिंडदान का सर्वोच्च तीर्थ
ब्रह्मकपाल को कपालमोचन तीर्थ भी कहा जाता है। मान्यता है कि जब भगवान ब्रह्मा का पांचवां सिर विचलित हो गया था, तब भगवान शिव ने उसे काटकर यहीं गिरा दिया था। वह सिर आज भी अलकनंदा तट पर शिला रूप में विद्यमान है।
ब्रह्मकपाल के तीर्थ पुरोहित मदन मोहन कोठियाल ने बताया:
“ब्रह्मकपाल में पिंडदान करने से पितरों को परम शांति मिलती है। विदेशों से भी श्रद्धालु यहां पहुंच रहे हैं और विधिपूर्वक तर्पण कर रहे हैं।”
तीर्थ पुरोहित हरीश सती कहते हैं:
“श्राद्ध पक्ष में तो यहां बड़ी संख्या में लोग आते हैं। यह तीर्थ उन लोगों के लिए भी विशेष है जिन्होंने कभी पितृ तर्पण नहीं किया। यहां एक बार तर्पण कर लेने के बाद अन्यत्र तर्पण की आवश्यकता नहीं होती।”
विदेशी श्रद्धालुओं की उपस्थिति ने बढ़ाई गरिमा
ब्रह्मकपाल में तर्पण करने वाले विदेशी श्रद्धालुओं की संख्या हर वर्ष बढ़ रही है। इस वर्ष रूस, यूक्रेन, नेपाल सहित अन्य देशों से श्रद्धालु पिंडदान के लिए पहुंचे हैं, जिससे यह तीर्थ वैश्विक श्रद्धा का केंद्र बनता जा रहा है।
श्रद्धा और परंपरा का मिलन
श्राद्ध पक्ष में बदरीनाथ धाम न केवल दर्शनों के लिए, बल्कि पितरों को स्मरण कर मोक्ष दिलाने के लिए भी प्रमुख केंद्र बन जाता है। कपाट खुलने से लेकर बंद होने तक यहां तर्पण की परंपरा चलती रहती है, लेकिन पितृ पक्ष में तीर्थ पर विशेष चहल-पहल रहती है।
ब्रह्मकपाल में पिंडदान करने से व्यक्ति अपने सभी पूर्वजों का ऋण चुकाता है और उनके मोक्ष का मार्ग प्रशस्त करता है।