सेल्फी से सिंड्रोम तक: बढ़ती डिजिटल लत बन रही मानसिक स्वास्थ्य की बड़ी चुनौती, क्या सेल्फी लेने की लत बन गई है मानसिक बीमारी?

देहरादून: मोबाइल फोन के कैमरे से शुरू हुआ सेल्फी का शौक अब एक गंभीर मानसिक स्वास्थ्य समस्या का रूप भी ले रहा है। विशेषज्ञ इसे “सेल्फाइटिस सिंड्रोम” के रूप में भी पहचान रहे हैं, जो हर आयु वर्ग के लोगों को अपनी चपेट में ले ही रहा है। बार-बार सेल्फी लेना, उसे सोशल मीडिया पर पोस्ट करना व फिर लाइक्स और कमेंट्स का बेसब्री से इंतजार करना – यह सब अब एक मनोरोग की श्रेणी में ही गिना जा रहा है।
क्या है सेल्फाइटिस सिंड्रोम?
अमेरिकन साइकेट्रिक एसोसिएशन की रिपोर्ट के अनुसार, बार-बार सेल्फी लेने की लत को “सेल्फाइटिस सिंड्रोम” भी कहा जाता है। यह व्यवहार केवल आदत नहीं बल्कि मानसिक असंतुलन का संकेत भी हो सकता है। इसे आम बोलचाल की भाषा में “सेल्फी फीवर” भी कहा जाता है।
दून अस्पताल की मनोरोग विशेषज्ञ डॉ. जया नवानी ने बताया कि सेल्फाइटिस सिंड्रोम 3 स्तरों में देखा जाता है:
- सौम्य (Mild):
व्यक्ति दिनभर में 3 सेल्फी लेता है लेकिन उन्हें सोशल मीडिया पर पोस्ट ही नहीं करता। - तीव्र (Acute):
दिनभर में 3 या उससे अधिक सेल्फी लेकर उन्हें सोशल मीडिया पर साझा भी करता है। - क्रोनिक (Chronic):
कम से कम 6 सेल्फी प्रतिदिन, सभी पोस्ट होती हैं और व्यक्ति बार-बार रिएक्शन भी चेक करता है।
मानसिक स्वास्थ्य पर असर
डॉ. नवानी के अनुसार, इस आदत से जुड़ी लत व्यक्ति के मानसिक स्वास्थ्य को भी प्रभावित करती है। इससे अवसाद, चिंता, ध्यान की कमी, बॉडी डिस्मॉर्फिक डिसऑर्डर व आक्रामक व्यवहार जैसी समस्याएं भी उत्पन्न हो सकती हैं।
उन्होंने बताया कि कई मामलों में यह आदत सोशल और आभासी पहचान के बीच का संतुलन ही बिगाड़ देती है, जिससे व्यक्ति वास्तविक जीवन से कटता ही चला जाता है।
समाधान क्या है?
चिकित्सकों की सलाह है कि व्यक्ति को सोशल मीडिया के सीमित उपयोग के साथ-साथ आत्ममूल्यांकन व मानसिक विश्राम की आदत भी डालनी चाहिए। यदि स्थिति गंभीर हो, तो मानसिक स्वास्थ्य विशेषज्ञ से परामर्श भी लेना जरूरी है।
सेल्फी, जो कभी आत्म-अभिव्यक्ति का माध्यम थी, अब कुछ लोगों के लिए आत्म-आलोचना व चिंता का कारण भी बनती जा रही है। यह समय है जब समाज को इस उभरती मानसिक स्वास्थ्य समस्या को गंभीरता से भी लेना चाहिए।