हाईकोर्ट से कांग्रेस नेता आनंद सिंह को राहत, गिरफ्तारी पर रोक
सोशल मीडिया पर बाढ़ को लेकर भ्रामक जानकारी फैलाने का आरोप, अब 27 अक्टूबर को अगली सुनवाई

नैनीताल। उत्तराखंड हाईकोर्ट ने कांग्रेस नेता आनंद सिंह मेहर को बड़ी राहत देते हुए उनकी गिरफ्तारी पर रोक लगा दी है। चंपावत जिले के बनबसा थाना क्षेत्र में दर्ज मामले में कोर्ट ने अंतरिम आदेश देते हुए कहा है कि जांच तो जारी रहेगी, लेकिन याचिकाकर्ता की गिरफ्तारी नहीं की जाएगी।
क्या है मामला?
2 सितंबर 2025 को चंपावत के बनबसा क्षेत्र में बाढ़ की स्थिति के दौरान कांग्रेस नेता आनंद सिंह पर फेसबुक और अन्य सोशल मीडिया माध्यमों पर भ्रामक जानकारी फैलाने का आरोप लगा।
एक स्थानीय भाजपा युवा मोर्चा पदाधिकारी द्वारा दर्ज कराई गई तहरीर में कहा गया कि आनंद सिंह ने झूठे वीडियो, फोटो और बयान सोशल मीडिया पर पोस्ट किए, जिससे समाज में भ्रम और असंतोष फैल रहा है।
आरोप है कि उन्होंने बाढ़ प्रभावित क्षेत्रों में जाकर लोगों को भड़काने, सरकारी विभागों पर झूठे आरोप लगाने और लोक सेवकों की छवि को धूमिल करने की कोशिश की।
किस कानून के तहत हुआ केस दर्ज?
बनबसा थाने में आनंद सिंह के खिलाफ निम्न धाराओं के तहत मामला दर्ज किया गया:
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आपदा प्रबंधन अधिनियम 2005 की धारा 54
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भारतीय न्याय संहिता की धारा 353(1)(B)
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भारतीय न्याय संहिता की धारा 353(2)
इन धाराओं में आपदा के समय अफवाह फैलाना, लोक सेवकों के कार्य में बाधा डालना, और झूठे आरोपों से सामाजिक अस्थिरता फैलाना शामिल हैं।
हाईकोर्ट में याचिका और कोर्ट का आदेश
गिरफ्तारी से बचने और प्राथमिकी को रद्द कराने के लिए आनंद सिंह ने उत्तराखंड हाईकोर्ट में याचिका दायर की। इस पर न्यायमूर्ति रविंद्र मैठाणी की एकल पीठ ने सुनवाई करते हुए कहा:
“जांच जारी रहेगी, लेकिन याचिकाकर्ता को गिरफ्तारी से अंतरिम राहत दी जाती है। साथ ही उसे जांच अधिकारी के साथ पूर्ण सहयोग करना होगा।”
कोर्ट ने मामले की अगली सुनवाई की तारीख 27 अक्टूबर 2025 तय की है और सभी पक्षों को तीन सप्ताह में जवाब दाखिल करने के निर्देश दिए हैं।
क्या कहा था आनंद सिंह ने?
मामले के केंद्र में मौजूद वीडियो में कांग्रेस नेता आनंद सिंह मेहर ने क्षेत्र में आई बाढ़ के लिए अवैध खनन और सरकारी लापरवाही को जिम्मेदार ठहराया था।
उनका कहना था:
“इस बाढ़ के लिए खनन माफिया और सरकारी मशीनरी सीधे तौर पर दोषी है। प्रभावितों को मुआवजा इन्हीं लोगों से वसूल किया जाना चाहिए।”
यह मामला राजनीतिक और प्रशासनिक जिम्मेदारियों से जुड़ा एक संवेदनशील मुद्दा बन चुका है। एक तरफ सोशल मीडिया पर भ्रामक जानकारी फैलाने का आरोप है, तो दूसरी ओर क्षेत्रीय समस्याओं को उठाने की राजनीतिक सक्रियता भी सामने है। अब देखना यह होगा कि 27 अक्टूबर को कोर्ट में क्या रुख सामने आता है और क्या प्राथमिकी को निरस्त किया जाएगा।





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