
उत्तराखंड हाईकोर्ट के एक अहम आदेश ने पंचायत चुनाव के गणित को ही उलझा दिया है। पंचायत मतदाता सूची को लेकर जारी एक सर्कुलर पर रोक लगने के बाद अब प्रत्याशियों के लिए मतदान की रणनीति में बड़ा बदलाव भी आ गया है।
हाईकोर्ट ने साफ कर दिया है कि पंचायती राज अधिनियम के तहत यदि किसी मतदाता का नाम नगर निकाय की मतदाता सूची में दर्ज है, तो उसे पंचायत की मतदाता सूची में जोड़ा ही नहीं जा सकता। इस निर्णय के बाद उन सैकड़ों ग्रामीण-शहरी मतदाताओं का मतदान करना संभव ही नहीं रहेगा, जिनके नाम दोनों सूचियों में दर्ज भी थे।
चुनाव में जीत की उम्मीद लगाए बैठे कई प्रत्याशियों की रणनीति इन मतदाताओं पर ही टिकी होती थी। पंचायत चुनावों में अक्सर प्रत्याशी निकटवर्ती शहरी क्षेत्रों से अपने समर्थकों या रिश्तेदारों को गांव लाकर मतदान भी करवाते रहे हैं। लेकिन अब दोहरे नामों पर सख्ती व न्यायालय की रोक के चलते उन्हें इन्हें गांव तक लाना मुश्किल भी हो गया है।
इस फैसले का सीधा असर कई प्रत्याशियों की जीत-हार पर भी पड़ सकता है। मतदाता भी असमंजस में हैं और प्रत्याशी अब नए सिरे से रणनीति बनाने को भी मजबूर हो गए हैं। ग्रामीण क्षेत्रों में चुनावी गणित अब पूरी तरह से स्थानीय वोटरों पर ही निर्भर हो गया है।