मसूरी: दुधली गांव में वन भूमि पर अवैध कटान, ग्रामीणों में भारी आक्रोश, भू-माफिया के खिलाफ सीबीआई जांच की मांग

मसूरी | 15 सितंबर 2025
उत्तराखंड की शांत और हरियाली से भरपूर पहाड़ियों के बीच बसे दुधली गांव में इन दिनों तनाव और असंतोष का माहौल है। ग्रामीणों ने आरोप लगाया है कि कुछ भू-माफिया वन भूमि पर अवैध पेड़ कटान और कब्जा कर रहे हैं – और यह सब वनाधिकार कानून 2006, भारतीय वन अधिनियम 1927 और पर्यावरणीय नियमों की धज्जियां उड़ाते हुए किया जा रहा है।
ग्रामीणों की पुकार: जंगल बचाओ, माफिया भगाओ
स्थानीय वनाधिकार समिति और ग्राम सभा का कहना है कि उन्होंने इस गंभीर मुद्दे की शिकायत राष्ट्रपति तक को पत्र लिखकर की, लेकिन आज तक कोई ठोस कार्रवाई नहीं हुई।
वनाधिकार समिति के सदस्य जबर सिंह वर्मा, बनवारी लाल और बीरबल सिंह चौहान ने बताया:
“हमने कई बार अधिकारियों को सूचित किया, लेकिन जब तक पेड़ पूरी तरह कट नहीं गए, कोई नहीं आया। हमारी ग्राम सभा को पूरी तरह नजरअंदाज किया गया।”
क्या है पूरा मामला?
-
अगस्त 2025: भू-माफिया द्वारा बिना अनुमति दुधली क्षेत्र की वन भूमि पर कब्जा कर अवैध पेड़ कटाई की गई।
-
सितंबर 2025: स्थानीय ग्रामीणों और वनाधिकार समिति ने प्रशासन और उच्च अधिकारियों को लिखित शिकायतें भेजीं।
-
वन विभाग की कार्रवाई:
-
मसूरी के डीएफओ अमित कुंवर ने कहा कि एक स्थानीय व्यक्ति ने वन विभाग की अनुमति के बिना 8 पेड़ काटे।
-
जब वनकर्मी मौके पर पहुंचे, तो उनके साथ अभद्रता की गई।
-
आरोपी के खिलाफ एफआईआर दर्ज कर दी गई है।
-
भारतीय वन अधिनियम 1927 और आईपीसी की धारा 353/186 के तहत मामला दर्ज हुआ।
-
कानून क्या कहता है?
-
🔹 भारतीय वन अधिनियम, 1927: किसी भी प्रकार की अवैध कटाई दंडनीय अपराध है।
-
🔹 वनाधिकार कानून, 2006 (Forest Rights Act):
-
किसी भी भूमि उपयोग, निर्माण, या कटाई की प्रक्रिया ग्राम सभा और वनाधिकार समिति की सहमति के बिना अवैध मानी जाती है।
-
यह कानून स्थानीय समुदायों को जंगल के संरक्षण और प्रबंधन का अधिकार देता है।
-
-
🔹 आईपीसी की धारा 353/186:
-
सरकारी कार्य में बाधा डालना और सरकारी कर्मचारियों से अभद्रता करना गंभीर अपराध है।
-
‘हम अपराधी नहीं, जंगल के रक्षक हैं’ – ग्राम सभा की हुंकार
स्थानीय ग्रामीणों ने “वन बचाओ संघर्ष” की मुहिम को तेज कर दिया है। उनका कहना है:
“जो लोग कानून को ताक पर रखकर जंगल काट रहे हैं, उन्हें रोकना सिर्फ सरकार की जिम्मेदारी नहीं, बल्कि हर जागरूक नागरिक की भी जिम्मेदारी है।”
ग्रामीणों ने निम्नलिखित मांगें रखी हैं:
-
पूरे मामले की सीबीआई या एसआईटी जांच कराई जाए।
-
भू-माफियाओं की राजनीतिक/प्रशासनिक साठगांठ को उजागर किया जाए।
-
दुधली क्षेत्र को ‘वन संरक्षण क्षेत्र’ घोषित किया जाए।
-
ग्राम सभा और वनाधिकार समिति को हर निर्णय में प्राथमिकता दी जाए।
सवाल उठता है – जंगल बचेंगे या माफिया जीतेगा?
दुधली की यह लड़ाई अब सिर्फ एक गांव की नहीं, बल्कि पूरे उत्तराखंड के जंगलों और पर्यावरण की सुरक्षा की लड़ाई बन गई है। जब तक वन विभाग और शासन स्तर पर ठोस कदम नहीं उठाए जाते, तब तक ऐसे माफिया गतिविधियों पर रोक लगाना मुश्किल होगा।