उत्तराखंड

नैनीताल: अंग्रेजी न बोल पाने वाले अधिकारी की जांच के हाईकोर्ट आदेश पर सुप्रीम कोर्ट की रोक, जानिए पूरा मामला

सुप्रीम कोर्ट ने हाईकोर्ट के आदेश पर लगाई रोक, उत्तराखंड में वोटर लिस्ट विवाद गहराया

नई दिल्ली/देहरादून। उत्तराखंड की वोटर लिस्ट में बाहरी लोगों के नाम जोड़ने व प्रशासनिक अधिकारी की भाषा दक्षता पर उठे सवालों को लेकर सुप्रीम कोर्ट ने एक बड़ा आदेश दिया है। कोर्ट ने उत्तराखंड हाईकोर्ट के उस निर्देश पर अंतरिम रोक भी लगा दी है, जिसमें राज्य चुनाव आयुक्त को यह जांच करने को कहा गया था कि क्या एक ऐसा अतिरिक्त जिला मजिस्ट्रेट, जो अंग्रेजी समझ सकता है लेकिन बोल नहीं पाता, प्रभावी ढंग से कार्य भी कर सकता है।

सुप्रीम कोर्ट की तीन जजों की पीठ — मुख्य न्यायाधीश बीआर गवई, जस्टिस के विनोद चंद्रन और जस्टिस एनवी अंजारिया — ने इस मामले की सुनवाई करते हुए कहा कि उत्तराखंड हाईकोर्ट का 18 जुलाई 2025 का आदेश अगले निर्देश तक स्थगित ही रहेगा।

इसके साथ ही सुप्रीम कोर्ट ने जनहित याचिका दायर करने वाले बुधलाकोट निवासी आकाश बोरा व उन 53 लोगों को नोटिस जारी किया है, जिन पर आरोप है कि वे उत्तराखंड के निवासी ही नहीं हैं, फिर भी उनके नाम यहां की मतदाता सूची में दर्ज भी हैं।

क्या है मामला?

बुधलाकोट के निवासी आकाश बोरा ने हाईकोर्ट में जनहित याचिका दायर कर दावा किया था कि उनके गांव की वोटर लिस्ट में 82 बाहरी लोगों के नाम भी शामिल हैं, जिनमें से अधिकांश ओडिशा व अन्य राज्यों से हैं। उन्होंने जब इसकी शिकायत की तो एसडीएम ने जांच कमेटी गठित की, जिसने पुष्टि की कि 18 नाम बाहरी लोगों के ही हैं। बावजूद इसके, अंतिम सूची में उन नामों को हटाया ही नहीं गया।

बाद में बोरा ने कोर्ट में ऐसे ही 30 और नामों की सूची भी पेश की। आयोग की ओर से बताया गया कि बीएलओ द्वारा घर-घर जाकर सर्वे कर सूची भी बनाई गई है और कुछ नामों को चिह्नित भी किया गया था।

कोर्ट ने पूछे कड़े सवाल

कोर्ट ने आयोग से पूछा कि वोटर लिस्ट तैयार करते समय आधार कार्ड, वोटर आईडी, राशन कार्ड या निवास प्रमाण जैसे दस्तावेजों की जांच भी की गई थी या केवल मौखिक जानकारी के आधार पर नाम जोड़े गए। कोर्ट ने दस्तावेजी प्रमाण प्रस्तुत करने का निर्देश दिया।

इसके अलावा, हाईकोर्ट यह भी विचार कर रहा था कि क्या “परिवार रजिस्टर” एक वैध दस्तावेज भी है, जिस पर निर्वाचक रजिस्ट्रीकरण अधिकारी (ERO) मतदाता सूची को अंतिम रूप देने के लिए भरोसा भी कर सकता है, खासकर तब जब उत्तर प्रदेश पंजीकरण नियम 1994 में इसका कोई उल्लेख ही नहीं है।

अगली सुनवाई की तैयारी

सुप्रीम कोर्ट ने सभी पक्षों को चार सप्ताह में जवाब दाखिल करने को भी कहा है। मामला अब संवेदनशील भी हो गया है क्योंकि यह प्रशासनिक दक्षता, चुनावी पारदर्शिता और बाहरी लोगों के नाम वोटर लिस्ट में जोड़े जाने जैसे गंभीर मुद्दों को भी उठाता है।

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