नंदप्रयाग रेंजर तबादला मामला: हाईकोर्ट ने उठाए सवाल, वन सचिव रविशंकर तलब

उत्तराखंड हाईकोर्ट ने बुधवार को एक अहम सुनवाई के दौरान वन विभाग के कार्यप्रणाली पर सवाल खड़े किए हैं। नंदप्रयाग के वन क्षेत्राधिकारी हेमंत बिष्ट के अचानक रुद्रप्रयाग अटैचमेंट के मामले में राज्य के वन सचिव रविशंकर को कोर्ट में तलब किया गया।
मुख्य न्यायाधीश जी. नरेंद्र और न्यायमूर्ति सुभाष उपाध्याय की खंडपीठ ने वन सचिव से सीधा सवाल पूछा:
“क्या किसी पूर्व प्रधान या जनप्रतिनिधि की महज शिकायत के आधार पर किसी अधिकारी का तबादला करना न्यायोचित है?“
क्या है पूरा मामला?
वन क्षेत्राधिकारी हेमंत बिष्ट ने हाईकोर्ट में याचिका दायर कर कहा कि वे नंदा देवी राजजात यात्रा 2026 की तैयारी से जुड़े कार्यों का संचालन कर रहे थे। एक स्थानीय पूर्व ग्राम प्रधान ने उनके खिलाफ शासन में शिकायत की। इसके बाद उन्हें बिना सुनवाई और बिना किसी पूर्व जांच के रुद्रप्रयाग अटैच कर दिया गया। जबकि वे वन विभाग की यात्रा से संबंधित कार्यों में सक्रिय भूमिका निभा रहे थे।
राजजात यात्रा की पृष्ठभूमि
नंदा देवी राजजात यात्रा उत्तराखंड की सबसे पवित्र और सांस्कृतिक रूप से समृद्ध यात्राओं में से एक है। यह यात्रा हर 12 साल में एक बार आयोजित होती है। 2026 में प्रस्तावित यह यात्रा अगले वर्ष होने वाली है, और इसकी तैयारियों में वन विभाग की भूमिका अत्यंत महत्वपूर्ण मानी जाती है।
वन सचिव का पक्ष और कोर्ट की प्रतिक्रिया
वन सचिव रविशंकर ने कोर्ट को बताया कि:
“केवल शिकायत ही आधार नहीं थी, कुछ और प्रशासनिक कारण भी हो सकते हैं। मैं प्रमुख वन संरक्षक से चर्चा करूंगा।”
कोर्ट ने इस पर स्पष्ट निर्देश दिया कि:
“इस सम्बंध में एक शपथ पत्र (Affidavit) दायर किया जाए, जिससे सभी तथ्यों को स्पष्ट किया जा सके।”
खंडपीठ ने मामले में अगली सुनवाई के लिए 7 अक्टूबर 2025 की तारीख निर्धारित की है।
कोर्ट का अंतरिम आदेश: तबादले पर रोक
रेंजर हेमंत बिष्ट द्वारा दायर याचिका पर सुनवाई करते हुए हाईकोर्ट ने उनके अटैचमेंट आदेश पर फिलहाल रोक लगा दी है। यह निर्णय तब तक लागू रहेगा जब तक अंतिम आदेश नहीं आ जाता।
प्रशासनिक कार्यप्रणाली पर सवाल
इस मामले ने उत्तराखंड में अधिकारियों के ट्रांसफर और अटैचमेंट की प्रक्रिया पर गंभीर सवाल खड़े कर दिए हैं। क्या सिर्फ जनप्रतिनिधियों की शिकायतों पर कार्रवाई की जा सकती है? क्या नंदा देवी राजजात जैसे महत्वपूर्ण कार्यों में लगे अधिकारियों को यूं हटाना नीतिगत बाधा नहीं है? और सबसे बड़ा सवाल — क्या अधिकारियों को पक्ष रखने का पूरा मौका दिया जाता है?
सवाल सिर्फ तबादले का नहीं, सिस्टम की पारदर्शिता का भी है
इस पूरे मामले ने राज्य में लोक सेवा, प्रशासनिक निष्पक्षता और न्यायिक निगरानी की अहमियत को फिर से रेखांकित किया है। हेमंत बिष्ट का तबादला केवल एक प्रशासनिक निर्णय नहीं, बल्कि एक संवेदनशील क्षेत्र में जनहित और परंपरा से जुड़े कार्यों की निरंतरता का सवाल भी बन गया है। अगली सुनवाई में यह देखना महत्वपूर्ण होगा कि सरकार अपने फैसले को कितनी पारदर्शिता और मजबूती से न्यायालय के समक्ष रखती है।




