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नन्ही परी केस: सुप्रीम कोर्ट से मुख्य आरोपी बरी, कांग्रेस ने उठाए सवाल

उत्तराखंड के बहुचर्चित नन्ही परी रेप और मर्डर केस में नया मोड़ आ गया है। सुप्रीम कोर्ट से मुख्य आरोपी अख्तर अली के बरी होने के बाद राज्य की राजनीति में हलचल मच गई है। कांग्रेस के वरिष्ठ नेता और पूर्व सांसद प्रदीप टम्टा ने पिथौरागढ़ में प्रेस वार्ता कर राज्य सरकार पर गंभीर आरोप लगाए हैं।

टम्टा ने राज्य सरकार को ठहराया जिम्मेदार

प्रेस कॉन्फ्रेंस में प्रदीप टम्टा ने कहा कि जिस व्यक्ति को निचली अदालत और हाईकोर्ट ने दोषी मानते हुए फांसी की सजा दी, वह सुप्रीम कोर्ट से कैसे बरी हो गया? उन्होंने आरोप लगाया कि राज्य सरकार ने सुप्रीम कोर्ट में मजबूती से पैरवी नहीं की।

“जिस वकील को सरकार ने सुप्रीम कोर्ट में खड़ा किया, उसे ‘नन्हीं परी’ के बारे में तक जानकारी नहीं थी। यहां तक कि पीड़ित परिवार को भी केस की कार्यवाही की कोई जानकारी नहीं दी गई।” – प्रदीप टम्टा

कांग्रेस का ऐलान – न्याय के लिए आंदोलन जारी रहेगा

प्रदीप टम्टा ने कहा कि यह केवल एक बच्ची की नहीं, बल्कि पूरे समाज की लड़ाई है। उन्होंने मांग की कि सरकार तुरंत सुप्रीम कोर्ट में री-ओपनिंग पिटीशन दायर करे और दोषी को सजा दिलवाए।

“जब तक नन्हीं परी को न्याय नहीं मिलेगा, कांग्रेस चुप नहीं बैठेगी।” – टम्टा


क्या है नन्ही परी केस?

घटना की पृष्ठभूमि:

  • तारीख: 20 नवंबर 2014

  • स्थान: हल्द्वानी, उत्तराखंड

  • घटना: पिथौरागढ़ की 7 वर्षीय बच्ची ‘नन्हीं परी’ हल्द्वानी के शीशमहल में एक शादी में शामिल होने आई थी। समारोह के दौरान वह लापता हो गई।

शव की बरामदगी:

  • 6 दिन बाद उसका शव गौला नदी से बरामद हुआ।

  • पोस्टमॉर्टम रिपोर्ट में पुष्टि हुई कि बच्ची के साथ गैंगरेप हुआ और फिर उसकी हत्या कर दी गई।

पुलिस जांच और गिरफ्तारी:

  • मुख्य आरोपी अख्तर अली को घटना के 8 दिन बाद चंडीगढ़ से गिरफ्तार किया गया।

  • उसकी निशानदेही पर प्रेमपाल और जूनियर मसीह को भी गिरफ्तार किया गया।

निचली अदालत और हाईकोर्ट का फैसला:

  • मार्च 2016: हल्द्वानी एडीजे कोर्ट ने अख्तर अली को फांसी की सजा सुनाई।

  • प्रेमपाल को 5 साल की सजा मिली जबकि जूनियर मसीह को बरी किया गया।

  • अक्टूबर 2019: उत्तराखंड हाईकोर्ट ने फैसले को बरकरार रखा।

सुप्रीम कोर्ट का निर्णय:

हाल ही में सुप्रीम कोर्ट ने मुख्य आरोपी अख्तर अली को सबूतों के अभाव में बरी कर दिया, जिससे पीड़ित परिवार और समाज में भारी निराशा फैल गई है।

क्या अब नन्हीं परी को न्याय मिलेगा?

इस सवाल ने पूरे उत्तराखंड को एक बार फिर झकझोर दिया है। पांच वर्षों में प्रदेश में कई मासूम बच्चियों के साथ दुष्कर्म की घटनाएं हुई हैं। सवाल यह है कि क्या हमारे सिस्टम में इन पीड़ितों को समय पर न्याय मिल पाएगा?

राज्य सरकार और न्यायपालिका पर अब बड़ी जिम्मेदारी है – केवल आरोपियों को सजा दिलाना ही नहीं, बल्कि पीड़ित परिवारों का भरोसा भी बनाए रखना।

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