उत्तराखंड

अब बाघ बने बड़ा खतरा: उत्तराखंड में तेंदुओं से ज्यादा घातक साबित हो रहे हैं बाघ

उत्तराखंड में बदल रहा है वन्यजीव हमलों का ट्रेंड: अब तेंदुओं से ज्यादा घातक साबित हो रहे बाघ

उत्तराखंड में मानव-वन्यजीव संघर्ष लगातार चिंता का विषय भी बना हुआ है, लेकिन अब इसमें एक नया रुझान भी देखने को मिल रहा है। पहले जहां तेंदुए के हमले ज्यादा जानलेवा माने जाते थे, वहीं इस वर्ष बाघ के हमलों ने ज्यादा जानें भी ली हैं।

आंकड़ों की जुबानी: तेंदुआ बनाम बाघ का हमला

वन विभाग के आंकड़ों के अनुसार, जनवरी से जून 2025 के बीच वन्यजीवों के हमलों में 25 लोगों की मौत व 136 घायल भी हुए हैं। इसमें

  • बाघ के हमले में 10 लोगों की मौत, 3 घायल
  • तेंदुए के हमले में 6 लोगों की मौत, 25 घायल

पिछले एक दशक (2014–2024) की बात करें तो:

  • बाघों के हमले में 68 मौतें और 83 घायल
  • तेंदुओं के हमले में 214 मौतें और 1006 घायल

रेस्क्यू और रोकथाम के प्रयास

वन विभाग ने मानव-वन्यजीव संघर्ष को कम करने के लिए रेस्क्यू ऑपरेशन भी तेज़ किए हैं।

  • 1 जनवरी 2024 से 30 जून 2025 तक 8 बाघों को पकड़ा भी गया, जिनमें से 7 को रेस्क्यू सेंटर भेजा गया और 1 को जंगल में ही छोड़ा गया।
  • बाघों के लिए 25 ट्रैंक्यूलाइज और ट्रीटमेंट अनुमति पत्र भी जारी किए गए।

वहीं तेंदुओं के लिए:

  • 124 बार पिंजरे और ट्रैंक्यूलाइज़िंग की अनुमति,
  • 5 को अपरिहार्य स्थिति में मारने की,
  • 4 को उपचार की अनुमति,
  • इस अवधि में 44 तेंदुओं को पकड़ा गया, जिनमें से 19 को रेस्क्यू सेंटर भेजा गया।

वन विभाग की रणनीति

अपर प्रमुख वन संरक्षक (वन्यजीव) विवेक पांडे ने बताया कि:

“संवेदनशील क्षेत्रों में क्विक रिस्पांस टीमों (QRT) की तैनाती भी की गई है। ग्रामीणों को जागरूक करने के लिए अभियान भी चल रहे हैं, और लगातार सर्विलांस व बचाव कार्य किए जा रहे हैं।”

वन विभाग द्वारा चलाए जा रहे ये प्रयास महत्वपूर्ण भी हैं, लेकिन तेजी से बढ़ते बाघों के हमले यह संकेत दे रहे हैं कि आने वाले समय में संघर्ष व जटिल भी हो सकता है।

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