भारत के प्रथम गांव मिलम और गुंजी में मनाया गया संघ शताब्दी वर्ष, सीमा क्षेत्र में राष्ट्रभावना की गूंज
Deprecated: preg_split(): Passing null to parameter #3 ($limit) of type int is deprecated in /home/u948756791/domains/doondarshan.in/public_html/wp-content/themes/jannah/framework/functions/post-functions.php on line 805

पिथौरागढ़ : राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ (RSS) की स्थापना के 100 वर्ष पूर्ण होने के अवसर पर उत्तराखंड के सीमांत गांवों में विशेष कार्यक्रमों का आयोजन किया गया। इस ऐतिहासिक अवसर पर पिथौरागढ़ जिले की जोहार घाटी स्थित मिलम गांव और भारत–तिब्बत सीमा पर स्थित गुंजी गांव में विजयादशमी के दिन पथ संचलन और शस्त्र पूजन कार्यक्रम संपन्न हुए। मिलम गांव, जो मुनस्यारी के लीलम मंडल में स्थित है, वहां स्वयंसेवकों ने कठिन यात्रा मार्ग से पहुंचकर पथ संचलन निकाला। यह आयोजन संघ के कार्य विस्तार और राष्ट्र सेवा भावना का प्रतीक माना जा रहा है।
कार्यक्रम की अध्यक्षता ग्राम प्रधान ने की। इस दौरान वक्ताओं ने सामाजिक समरसता, नागरिक कर्तव्य, पर्यावरण एवं जल संरक्षण, परिवार प्रबोधन, और ‘स्व’ के बोध जैसे महत्वपूर्ण विषयों पर विचार साझा किए। भारत–नेपाल–तिब्बत की त्रि-सीमा के समीप स्थित गुंजी गांव में भी संघ के शताब्दी वर्ष पर शस्त्र पूजन और पथ संचलन कार्यक्रम आयोजित हुआ। गुंजी, समुद्र तल से लगभग 3,200 मीटर (10,500 फीट) की ऊंचाई पर स्थित है और कैलाश मानसरोवर यात्रा का प्रमुख पड़ाव है। इस ऐतिहासिक कार्यक्रम में अखिल भारतीय सह सेवा प्रमुख राजकुमार मटेला सहित अनेक स्वयंसेवक और स्थानीय ग्रामीणों की उत्साहजनक भागीदारी देखने को मिली। यह पहली बार था जब इन सीमावर्ती क्षेत्रों में इस प्रकार का संगठित आयोजन हुआ, जिससे स्थानीय लोगों में गर्व और प्रेरणा का भाव देखने को मिला।
-
संघ की स्थापना 1925 में हुई थी, और वर्ष 2025 में संगठन अपनी शताब्दी पूरी कर रहा है।
-
यह वर्ष सिर्फ उत्सव नहीं, बल्कि “संकल्प वर्ष” के रूप में मनाया जा रहा है।
-
शिक्षा, सेवा, पर्यावरण, ग्राम विकास, सामाजिक समरसता, राष्ट्रभक्ति और चरित्र निर्माण जैसे क्षेत्रों में संघ के कार्यों को इस वर्ष जनसामान्य तक पहुंचाने का प्रयास किया जा रहा है।
“अखंड भारत”, “विश्वगुरु भारत”, और “समरस समाज” जैसे विषयों पर अपने विचार प्रस्तुत किए। इन कार्यक्रमों की खास बात यह रही कि इन्हें सीमा सुरक्षा, सांस्कृतिक जागरण और समाज-समरसता के प्रतीक के रूप में देखा जा रहा है। वहीं, स्थानीय ग्रामीणों ने भी संगठन की सक्रिय उपस्थिति को प्रेरणास्रोत बताया। भारत के सीमावर्ती गांवों में राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ द्वारा आयोजित ये कार्यक्रम राष्ट्र भावना, सेवा और समर्पण के आदर्शों को सीमाओं तक पहुंचाने का प्रतीक हैं। शताब्दी वर्ष के इस आयोजन ने यह दिखा दिया है कि राष्ट्र निर्माण की चेतना अब देश की सीमाओं पर भी मजबूती से स्थापित हो रही है।




