उत्तराखंड

उत्तराखंड सरकार की नई कृषि नीति: पहाड़ी जिलों में खेती के संकट को लेकर विशेषज्ञों की चिंता

उत्तराखंड सरकार ने राज्य के 11 पहाड़ी जिलों में सेब, कीवी, मोटे अनाज व गैर-मौसमी सब्जियों के उत्पादन को बढ़ावा देने के लिए एक नई प्रोत्साहन नीति की घोषणा भी की है। इसका उद्देश्य स्थानीय अर्थव्यवस्था और रोजगार सृजन को बढ़ावा भी देना है। हालांकि, कृषि विशेषज्ञों का मानना है कि बिना ‘गोल खाते’ की दशकों पुरानी व्यवस्था में बदलाव के, खेती की तस्वीर बदलना मुश्किल ही है।

राज्य में कृषि योग्य भूमि में वृद्धि भी हुई है, जो 2019-20 में 3,29,564 हेक्टेयर से बढ़कर 2022-23 में 3,62,450 हेक्टेयर भी हो गई है। वहीं, वास्तविक शुद्ध बोया गया क्षेत्रफल कम भी हो रहा है, और 2019-20 से 2022-23 के बीच 72,490 हेक्टेयर भूमि पर खेती भी घट गई है।

राज्य में भूमि बंदोबस्त की प्रक्रिया लंबित भी है, और ऐच्छिक चकबंदी की योजना भी प्रभावी नहीं रही है। इसका परिणाम यह है कि पहाड़ी क्षेत्रों में खेती की भूमि पर झाड़ियाँ व पेड़ उग आए हैं, जिससे खेती उजाड़ हो गई है। वन व राजस्व भूमि की स्पष्टता न होने से भी कृषि में समस्याएँ भी आ रही हैं।

प्रगतिशील किसान पद्मश्री प्रेमचंद शर्मा का कहना है कि सरकार को खाली पड़ी भूमि पर खेती करने की अनुमति भी देनी चाहिए। हिमाचल प्रदेश में ऐसा करने से अच्छे परिणाम मिले हैं। उत्तराखंड में भी पढ़े-लिखे युवा खेती करना चाहते हैं, लेकिन भूमि की उपलब्धता की समस्या है।

राज्य में 15,700 से अधिक राजस्व गांव हैं, लेकिन केंद्र की नीति के तहत 2023 तक केवल 33 गांवों में भूमि बंदोबस्त की प्रक्रिया भी शुरू हुई है। मैदानी जिलों में 921 गांवों में चकबंदी की प्रक्रिया भी शुरू हुई, जिनमें से 471 में चकबंदी पूरी भी हो चुकी है।

राज्य सरकार ने सेब, कीवी व अन्य फसलों के लिए आकर्षक नीतियाँ बनाई हैं, लेकिन 11 पर्वतीय जिलों में क्लस्टर आधारित खेती ही आर्थिक रूप से फायदेमंद भी होगी। इसके लिए कम से कम एक व्यक्ति के पास 2 नाली भूमि होनी चाहिए। पहाड़ी क्षेत्रों में खेती बिखरी हुई है, जिससे चकबंदी मददगार साबित भी हो सकती थी।

राज्य सरकार चकबंदी व भूमि बंदोबस्त की दिशा में गंभीर प्रयास कर रही है। नई नीति लाई जा रही है, और केंद्र सरकार ने 2030 तक पूरे देश में भूमि बंदोबस्त करने का लक्ष्य भी तय किया है। उत्तराखंड ने कुछ जिलों में पायलट आधार पर योजना भी शुरू की है, जिसे पूरे प्रदेश में लागू करने का प्रयास भी किया जाएगा।

कृषि विशेषज्ञों का मानना है कि बिना भूमि बंदोबस्त व चकबंदी की प्रक्रिया को प्रभावी बनाए बिना, नई कृषि नीतियाँ सफल नहीं हो सकतीं। इसलिए, राज्य सरकार को इन मुद्दों पर गंभीरता से काम भी करना होगा।

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