उत्तराखंड

हरिद्वार डिवीजन बना हाथियों की मौत का ‘एपिक सेंटर’, छह दिनों में तीसरे हाथी की संदिग्ध मौत से वन विभाग में हड़कंप

देहरादून – उत्तराखंड का हरिद्वार वन प्रभाग इन दिनों वन्यजीव संरक्षण के गंभीर सवालों के घेरे में है। बीते छह दिनों में तीन हाथियों की संदिग्ध परिस्थितियों में हुई मौत ने न केवल वन विभाग की कार्यप्रणाली पर सवाल खड़े कर दिए हैं, बल्कि पूरे राज्य में वन्यजीव सुरक्षा व्यवस्था की पोल भी खोल दी है।

हरिद्वार, जो पहले हाथियों की चहल-कदमी और जैव विविधता के लिए जाना जाता था, अब लगातार हो रही हाथियों की मौतों के कारण ‘हाथियों की कब्रगाह बनता नजर आ रहा है।

तीन मौतें, एक पैटर्न — हरिद्वार डिवीजन में ही क्यों?

एक नर हाथी का शव अमरूद के बाग में मिला, जिसकी उम्र लगभग 30-35 वर्ष आंकी गई। स्थानीय लोगों का आरोप है कि हाथी की मौत करंट लगने से हुई, लेकिन वन विभाग ने अभी तक इसकी पोस्टमॉर्टम रिपोर्ट सार्वजनिक नहीं की है। एक और हाथी का शव निजी भूखंड पर मिला। यह हाथी स्थानीय लोगों के बीच ‘एक दांत वाला’ नाम से जाना जाता था। इस बार मौत का कारण स्पष्ट रूप से करंट पाया गया। संबंधित भूस्वामी के खिलाफ मुकदमा दर्ज कर गिरफ्तारी की प्रक्रिया शुरू कर दी गई है। मृत हाथी की उम्र करीब 42 वर्ष बताई गई।

तीसरा हाथी भी नर और करीब 30 वर्ष की उम्र का था। मौत का कारण प्रारंभिक रूप से हार्ट फेल और अत्यधिक कमजोरी बताया जा रहा है। हालांकि, जिस क्षेत्र में हाथी की लाश मिली, वहां सोलर फेंसिंग दिखाई दी, जिससे संदेह और गहरा गया है। तीनों हाथियों की मौत की अंतिम पुष्टि पोस्टमॉर्टम रिपोर्ट से ही होगी, लेकिन बार-बार करंट लगने की आशंका और संदिग्ध परिस्थितियाँ वन विभाग की निगरानी प्रणाली की कमजोरी को उजागर कर रही हैं।

गौरतलब है कि हरिद्वार डिवीजन पहले से ही अवैध वेनम तस्करी के मामलों को लेकर सुर्खियों में रहा है। जहरीले सांपों के ज़हर के अवैध व्यापार से जुड़े मामले अब तक अनसुलझे हैं और किसी बड़ी गिरफ्तारी की सूचना भी नहीं आई है।

अब एक के बाद एक हो रही हाथियों की मौतों ने वन विभाग की निष्क्रियता पर सवाल खड़े कर दिए हैं। लगातार हो रही इन घटनाओं को देखते हुए वन मंत्री सुबोध उनियाल ने चीफ वाइल्डलाइफ वार्डन को मौके पर जाकर जांच के निर्देश दिए हैं। वन विभाग के वरिष्ठ अधिकारी भी हरिद्वार डिवीजन पहुंचकर मौतों के कारणों की बारीकी से जांच कर रहे हैं।

वन विभाग द्वारा घटनास्थलों का फिजिकल निरीक्षण किया जा रहा है और संबंधित रेंज अधिकारियों से भी रिपोर्ट तलब की गई है। वन्यजीव विशेषज्ञों का मानना है कि अगर समय रहते कार्रवाई नहीं हुई, तो यह समस्या और विकराल हो सकती है। इन लगातार होती मौतों के पीछे मानव-वन्यजीव संघर्ष, अवैध करंटिंग, या व्यवस्थित वाइल्डलाइफ ट्रैफिकिंग जैसे संभावित कारणों को नकारा नहीं जा सकता।

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