अल्मोड़ा का गर्व: भाई-बहन स्निग्धा और जन्मेजय तिवारी करेंगे ब्राजील में भारत का प्रतिनिधित्व
अल्मोड़ा: उत्तराखंड के अल्मोड़ा जनपद के लिए यह गर्व का अवसर भी है। यहां के भाई-बहन स्निग्धा तिवारी व जन्मेजय तिवारी ब्राजील के बेलम शहर में आयोजित हो रहे संयुक्त राष्ट्र जलवायु परिवर्तन सम्मेलन (COP30) में भारत का प्रतिनिधित्व कर रहे हैं। यह सम्मेलन 10 से 21 नवंबर 2025 तक चलेगा, जिसमें दुनिया के करीब 200 देशों के प्रतिनिधि जलवायु परिवर्तन से निपटने की रणनीतियों पर भी चर्चा करेंगे।
अल्मोड़ा के भाई-बहन की अंतरराष्ट्रीय मंच पर बड़ी भूमिका
मंगलवार को दोनों ब्राजील के लिए रवाना भी हुए। स्निग्धा तिवारी एक पर्यावरण, कानून विशेषज्ञ व ग्रीन क्लाइमेट सलाहकार हैं। वे ग्लोबल ग्रीन्स की क्लाइमेट वर्किंग ग्रुप की सचिव के रूप में सम्मेलन के दूसरे सप्ताह में एशिया-प्रशांत क्षेत्र का प्रतिनिधित्व भी करेंगी। स्निग्धा इससे पहले भी 3 अंतरराष्ट्रीय जलवायु सम्मेलनों में ग्लोबल ग्रीन्स का नेतृत्व भी कर चुकी हैं।
इस बार वे जलवायु कार्रवाई, मानवाधिकार, जलवायु वित्त व न्यायपूर्ण ऊर्जा परिवर्तन जैसे अहम मुद्दों पर अपनी बात भी रखेंगी। वहीं, उनके छोटे भाई जन्मेजय तिवारी, जो पिछले एक दशक से जलवायु परिवर्तन, अनुकूलन व ग्लोबल साउथ के युवाओं से जुड़े मुद्दों पर काम कर रहे हैं, इस बार COP30 के एक सत्र की अध्यक्षता भी करेंगे। वे युवाओं की भागीदारी, ऊर्जा संक्रमण के दौरान न्याय व वंचित समुदायों के अधिकारों की सुरक्षा पर चर्चा भी करेंगे। वर्तमान में जन्मेजय उत्तराखंड सरकार के संस्कृति विभाग में कार्यरत भी हैं।
उत्तराखंड के लिए गौरवपूर्ण क्षण
दोनों की इस अंतरराष्ट्रीय भागीदारी पर अल्मोड़ा और पूरे उत्तराखंड में गर्व की भावना भी है। उनके पिता, राज्य आंदोलनकारी व सामाजिक कार्यकर्ता पी.सी. तिवारी ने कहा —
“यह सम्मेलन वैश्विक स्तर पर जलवायु न्याय व सतत विकास के नए रास्ते तय करेगा। स्निग्धा और जन्मेजय ने हमेशा उत्तराखंड की पर्यावरणीय चुनौतियों को अंतरराष्ट्रीय मंचों पर भी उठाया है, जिससे हिमालयी राज्यों की आवाज़ दुनिया तक भी पहुंच रही है।”
युवा पीढ़ी के लिए प्रेरणा
ब्राजील में हो रहा यह COP30 सम्मेलन जलवायु परिवर्तन से निपटने के लिए वैश्विक प्रयासों को और मजबूत भी करेगा। ऐसे में अल्मोड़ा के इन युवा प्रतिनिधियों की भागीदारी न केवल प्रदेश बल्कि देश के लिए भी प्रेरणादायक भी है। इनके अनुभवों से आने वाली पीढ़ी को पर्यावरण संरक्षण व जलवायु न्याय के प्रति जागरूकता की नई दिशा भी मिलेगी।



