“प्रवेशोत्सव” के दिन बंद रहा स्कूल का गेट…, जमालपुर कलां में अध्यापकों की मनमानी से मायूस लौटे अभिभावक
सरकारी आदेशों को नजरअंदाज कर राजकीय उच्चत्तर माध्यमिक विद्यालय में अभिभावकों को नहीं मिली एंट्री, शिक्षा विभाग में मचा हड़कंप

हरिद्वार — उत्तराखंड सरकार द्वारा शिक्षा को बढ़ावा देने के उद्देश्य से पूरे प्रदेश में “प्रवेशोत्सव” धूमधाम से मनाया जा रहा है। लेकिन हरिद्वार जिले के राजकीय उच्चत्तर माध्यमिक विद्यालय जमालपुर कलां में इस अभियान की धज्जियां उड़ती नजर आईं। विद्यालय प्रशासन की मनमानी के चलते आज सोमवार को अभिभावक स्कूल के बंद गेट के बाहर धूप में खड़े रहे, जबकि भीतर प्रवेशोत्सव के नाम पर खानापूर्ति होती रही।
बंद गेट, बंद सुनवाई, लौटते सपने
सरकारी निर्देशों के बावजूद, जब अभिभावक अपने बच्चों का दाखिला कराने पहुंचे तो विद्यालय का मुख्य द्वार बंद मिला। किसी अधिकारी या शिक्षक ने बाहर आकर बात करने की जहमत नहीं उठाई, जिससे कई अभिभावक मायूस होकर लौट गए। कुछ ने शिकायत की कि छुट्टी के बाद अंदर जाने दिया गया, लेकिन वहां भी “सीट नहीं है” कहकर टाल दिया गया।
अभिभावकों की पीड़ा
- रीता देवी कहती हैं, “सुबह से खड़ी हूं, पोती का एडमिशन करवाने आई थी। लेकिन स्कूल का गेट खुला ही नहीं। सरकार को ऐसे शिक्षकों के खिलाफ सख्त कदम उठाने चाहिए।”
- सोनम सैनी ने बताया, “प्रधानाध्यापक बहुत अभद्र हैं, बात तक नहीं सुनते। ऐसे अधिकारी को यहां से हटाया जाना चाहिए।”
- संगीता गुप्ता, जो अपनी बेटी का कक्षा 6 में दाखिला करवाना चाहती थीं, ने कहा, “तीन दिन से चक्कर काट रही हूं, लेकिन कोई सुनवाई नहीं। ‘बेटी पढ़ाओ’ का नारा क्या इसी तरह पूरा होगा?”
प्रधानाध्यापक का तर्क
प्रधानाध्यापक प्रमोद कुमार बर्थवाल ने अपनी सफाई में कहा, “बिना उच्चाधिकारियों की अनुमति के स्कूल समय में किसी को अंदर नहीं आने दिया जा सकता। बैठने की सुविधा नहीं है, इसलिए प्रवेश रोके गए हैं।”
प्रशासन की प्रतिक्रिया
मुख्य शिक्षा अधिकारी (प्रभारी) आशुतोष भंडारी ने बताया, “मामला संज्ञान में नहीं था, लेकिन जांच कराई जाएगी। अगर प्रधानाध्यापक दोषी पाए जाते हैं, तो उनके खिलाफ सख्त कार्रवाई की जाएगी।”
ग्राम प्रधान ने भी जताई नाराजगी
ग्राम प्रधान हरेंद्र चौधरी ने कहा, “स्कूल में बार-बार यही समस्या आ रही है। प्रधानाध्यापक को कई बार समझाया गया, लेकिन वे लगातार मनमानी कर रहे हैं। अधिकारी ध्यान दें और उचित कार्रवाई करें।”
जहां एक ओर सरकार सरकारी स्कूलों में बच्चों की संख्या बढ़ाने और शिक्षा की गुणवत्ता सुधारने के लिए लाखों रुपये खर्च कर रही है, वहीं नीचले स्तर पर कुछ जिम्मेदारों की लापरवाही पूरे प्रयासों पर पानी फेर रही है। अगर समय रहते कार्रवाई नहीं हुई, तो सरकार की मंशा और योजनाएं दोनों ही धरातल पर दम तोड़ती नजर आएंगी।
क्या आपने भी सरकारी स्कूल में ऐसा अनुभव किया है? हमें बताएं, ताकि आपकी आवाज़ प्रशासन तक पहुंचाई जा सके।