देहरादून से धर्मेंद्र का खास रिश्ता — जब एक खबर ने बदल दिया था एफआरआई का नियम
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देहरादून। बॉलीवुड के ‘ही-मैन’ धर्मेंद्र व देहरादून का रिश्ता बेहद ही पुराना और खास रहा है। एक समय ऐसा भी आया जब उनकी लोकप्रियता के कारण एफआरआई (Forest Research Institute) को अपना नियम भी बदलना पड़ा और बॉटेनिकल गार्डन आम जनता के लिए बंद भी करना पड़ा।
1990 की घटना जिसने बदल दिया एफआरआई का सिस्टम
वर्ष 1990 में फिल्म फरिश्ते की शूटिंग चल रही थी। अखबारों में खबर छपी कि धर्मेंद्र एफआरआई में पहुंचने वाले हैं। बस क्या था—25 से 30 हजार प्रशंसक वहां उमड़ ही पड़े। धर्मेंद्र तो शूटिंग के सिलसिले में वहां नहीं पहुंचे, लेकिन भारी भीड़ ने बॉटेनिकल गार्डन को काफी नुकसान भी पहुंचा दिया। इसके बाद एफआरआई प्रशासन ने गार्डन को आम जनता के लिए बंद ही कर दिया और मुख्य परिसर में प्रवेश भी नियंत्रित भी कर दिया।
पत्रकार व अभिनेता सतीश शर्मा के अनुसार, इससे पहले एफआरआई पूरी तरह लोगों के लिए खुला भी रहता था। उन्होंने बताया कि धर्मेंद्र इससे पहले भी 1960 के दशक में 2 अलग-अलग फिल्मों की शूटिंग के लिए देहरादून भी आए थे।
1960 के दशक में देहरादून में रही दो यादगार शूटिंग
– 1962 में आदमी और इंसान का मशहूर गाना “जागेगा इंसान…” निर्माणाधीन डाकपत्थर बैराज पर फिल्माया भी गया था। यह यश चोपड़ा की पहली निर्देशित फिल्म थी और धर्मेंद्र इसमें एक डाम इंजीनियर की भूमिका में भी थे।
– 1967 में धर्मेंद्र अभिनेत्री नूतन के साथ दुल्हन एक रात की की शूटिंग के लिए कई दिनों तक देहरादून में भी रहे। आज भी डाकपत्थर बैराज पर इस फिल्म की मार्किंग मौजूद भी है, जिसे देखने लोग जाते हैं।
दीपक नागलिया की यादें — “इतना हैंडसम इंसान आज तक नहीं देखा”
प्रभात सिनेमा के स्वामी दीपक नागलिया उस दौर को याद करते हुए बताते हैं कि 1967 में धर्मेंद्र जब देहरादून आए थे तो उनके घर एक पार्टी भी रखी गई थी। उस समय नागलिया 15 वर्ष के थे। वह कहते हैं—“मैं आज भी वह रात नहीं भूल सकता। मैंने आज तक इतना हैंडसम व्यक्ति ही नहीं देखा।”
धर्मेंद्र लगातार 2 दिनों तक उनके घर आयोजित पार्टी में शामिल भी हुए थे। नागलिया कपूर परिवार के भी नजदीकी रहे व देहरादून में पढ़ाई के दौरान करीना कपूर के स्थानीय अभिभावक भी रहे हैं।
जब अपने पसंदीदा ब्रांड के साथ चुपचाप बैठे रहे धर्मेंद्र
नागलिया बताते हैं कि पार्टी में धर्मेंद्र का पसंदीदा ब्रांड भी रखा गया था। सभी लोग बातचीत में मग्न थे और धर्मेंद्र अपने ब्रांड के साथ एक कोने में चुपचाप बैठकर रात 12 बजे तक पार्टी का आनंद भी लेते रहे। अगले दिन भी उनका यही अंदाज़ देखने को मिला—सबके जाने के बाद अंत में वह अकेले पार्टी से ही लौटे।
देहरादून की इन यादों ने न सिर्फ शहर को धर्मेंद्र से जोड़ भी दिया, बल्कि एफआरआई के इतिहास में भी एक अनोखा अध्याय भी जोड़ दिया।




